गर्दिश-ए-दौराँ ने तन्हा कर दिया जिस ने जब चाहा तमाशा कर दिया मुझ को प्यासा देखने के शौक़ में तू ने दिल-दरिया को सहरा कर दिया मैं ने जो चाहा न वैसा हो सका तू ने जैसा चाहा वैसा कर दिया अब अँधेरों का मुझे कुछ डर नहीं तू ने जो दिल में उजाला कर दिया जाने क्या होता जो फिर आता नज़र इक झलक ने तेरा शैदा कर दिया मुतमइन 'ज़रयाब' हो जाएगा जब वक़्त ने ग़म का मुदावा कर दिया