हमारी आँखों में अश्कों का आ के रह जाना झुका के सर को तिरा मुस्कुरा के रह जाना दिला बहुत न उलझ नामा-बर को क्या मैं ने सिखा दिया था कि जाना तो जा के रह जाना शहीद-ए-नाज़ की भूली नहीं मुझे सूरत तिरी तरफ़ को निगाहें फिरा के रह जाना वो बज़्म-ए-ग़ैर वो हर बार इज़्तिराब मिरा ब-मसलहत वो तिरा मुस्कुरा के रह जाना ठहर तो जा रुख़-ए-जानाँ पे ऐ निगह कुछ देर सनद नहीं फ़क़त आँसू बहा के रह जाना निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को मिरा वो हाथ में साग़र उठा के रह जाना जो पूछें हश्र में कुछ वो तो हाँ दिला शाबाश वहाँ भी तू यूँ ही बातें बना के रह जाना अगर था नश्शा तो गिरना था पा-ए-ख़ुम पे मुझे मुझे पसंद नहीं लड़खड़ा के रह जाना नहीं ये हुस्न नहीं बख़्त की है कोताही सवाल-ए-वस्ल का होंटों तक आ के रह जाना किसी तरह तो ये जिस्म-ए-कसीफ़ पाक हो शाद गली में यार की जाना तो जा के रह जाना