ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया सफ़ेद बाल लिए सर पे इक वबाल आया मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल हलाल करने मुझे ईद का हिलाल आया अगर है दीदा-ए-रौशन तो आफ़्ताब को देख उधर उरूज हुआ और इधर ज़वाल आया लुटाए देते हैं इन मोतियों को दीदा-ए-शौक़ भर आए अश्क कि मुफ़लिस के हाथ माल आया लगी नसीम-ए-बहारी जो मअरिफ़त गाने गुलों पे कुछ नहीं मौक़ूफ़ सब को हाल आया पयाम-बर को अबस दे के ख़त उधर भेजा ग़रीब और वहाँ से शिकस्ता-हाल आया ख़ुदा ख़ुदा करो ऐ 'शाद' इस पे नख़वत क्या जो शाइरी तुम्हें आई तो क्या कमाल आया