हमारी अक़्ल पर ताले पड़े हैं खंडर है ज़ेहन और जाले पड़े हैं ब-ज़ाहिर साफ़ आते हैं नज़र दिल मगर अंदर से ये काले पड़े हैं कभी देखो पलट कर आस्तीं को कई ही साँप हम पाले पड़े हैं मयस्सर कैसे हो दो वक़्त रोटी कि जब इक वक़्त के लाले पड़े हैं करें ख़ुद ही ख़िज़ाओं के हवाले चमन के ऐसे रखवाले पड़े हैं बहुत रोया जुदा हो कर वो शायद तभी तो आँख में हाले पड़े हैं दहकते रास्ते पर चल पड़े थे अभी तक पाँव में छाले पड़े हैं लुटा सकते हैं उल्फ़त में वो जानें बहुत ऐ 'साद' मतवाले पड़े हैं