हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है अगर तदबीर हम करते हैं तो तक़दीर हँसती है असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में मिरे दीवाना-पन को देख कर ज़ंजीर हँसती है कभू पहुँची न इस के दिल तलक रह ही में थक बैठी बजा उस आह-ए-बे-तासीर पर तासीर हँसती है तू सूरत उस की क्या खींचेगा अपनी देख तो सूरत मुसव्विर इस तिरी तस्वीर पर तस्वीर हँसती है वही है मर्द जो हो रू-ब-रू तरवार के 'हातिम' कि मुँह के फेरते नामर्द पर शमशीर हँसती है