ज़िंदगी जैसे भी गुज़रेगी गुज़र जाएगी ये ख़बर देखना अब और किधर जाएगी क्या मिरी ज़ात तिरी फ़िक्र को देगी महमेज़ क्या मिरी बात तिरे दिल में उतर जाएगी लफ़्ज़ बदले हैं तो मा'नी भी बदलना होंगे वर्ना ता'मीर किसी और के सर जाएगी रूह इक दिन तो बदन से मिरे होंगी आज़ाद चाहता हूँ कि न जाए वो मगर जाएगी इल्म के साथ है लाज़िम कि अमल हो 'मंज़र' बात सहरा की सदा हो तो किधर जाएगी