हमारी बात में सुन दम का रम्ज़ हैगा क्या किसी भी पेच किसी ख़म का रम्ज़ हैगा क्या वो दौर और था जब तुम ने मुझ से पूछा था मोहब्बतों में कहीं ग़म का रम्ज़ हैगा क्या ये आब-ए-सादा ये आब-ए-रवाँ ये आब-ए-अज़ल इस आब-ए-नाब में ज़मज़म का रम्ज़ हैगा क्या फ़लक पे अब्र भी अंजुम भी अब्र-ए-बाराँ भी मगर ज़मीं पे झमाझम का रम्ज़ हैगा क्या न कोई तिश्ना-लबी है न कोई सैराबी तो मेरे जाम तिरे जम का रम्ज़ हैगा क्या उसी के दम से बक़ा है उसी के दम से फ़ना फ़ना-बक़ा में बता दम का रम्ज़ हैगा क्या 'अनीस' रक़्स में तुम हो कि रक़्स है तुम में कि आख़िरश ये दमादम का रम्ज़ हैगा क्या