हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी गुलों की बात छिड़ी और उन को ख़ार लगी बहुत सँभाल के हम ने रखे थे पाँव मगर जहाँ थे ज़ख़्म वहीं चोट बार-बार लगी क़दम क़दम पे हिदायत मिली सफ़र में हमें क़दम क़दम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी नहीं थी क़द्र कभी मेरी हसरतों की उसे ये और बात कि अब वो भी बे-क़रार लगी मदद का हाथ नहीं एक भी बढ़ा था मगर अजीब दौर कि बस भीड़ बे-शुमार लगी