हमारी गर्दिश-ए-पा रास्तों के काम आई कहीं पे सुब्ह हुई और कहीं पे शाम आई गिराँ गुज़रने लगा था सुकूत-ए-मय-ख़ाना बहुत दिनों में सदा-ए-शिकस्त-ए-जाम आई कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं हयात दूर तलक हम से हम-कलाम आई किसी को तेरा तबस्सुम मिला किसी को अदा हमारे नाम तिरी सोहबतों की शाम आई वहीं पे बरसा है बादल जहाँ हवा ने कहा हमारी छत पे तो बारिश बराए-नाम आई