हमारी हक़-नवाई क्या सुनेगी ये ख़ुदाई क्या किसी ज़िल्ल-ए-इलाही तक मिरी होगी रसाई क्या फ़लक से जब उतर आए सफ़र करते ख़लाई क्या अना के सामने तेरी हमारी कज-अदाई क्या तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से मिलेगी अब रिहाई क्या 'फ़राग़' उस की निगाहों में लहू क्या रौशनाई क्या