फिर ख़ौफ़ का इक रंग यहाँ भी है वहाँ भी दरपेश कोई जंग यहाँ भी है वहाँ भी महफ़ूज़ कहीं भी तो नहीं है सर-ए-इंसाँ हर हाथ में अब संग यहाँ भी है वहाँ भी जाएँ तो कहाँ जाएँ अमाँ ढूँडने वाले इंसाँ पे ज़मीं तंग यहाँ भी है वहाँ भी अल्लाह रे तज्दीद-ए-रिफ़ाक़त की ये कोशिश हर शख़्स मगर दंग यहाँ भी है वहाँ भी पाज़ेब की झंकार में बरसात की लय में इक रंग इक आहंग यहाँ भी है वहाँ भी है गर्म 'फ़राग़' आज भी बाज़ार ग़ज़ल का पर शाइ'री बे-रंग यहाँ भी है वहाँ भी