हमारी हम-नफ़सी को भी क्या दवाम हुआ वो अब्र-ए-सुर्ख़ तो मैं नख़्ल-ए-इंतिक़ाम हुआ यहीं से मेरे अदू का ख़मीर उट्ठा था ज़मीन देख के मैं तेग़-ए-बे-नियाम हुआ ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायद हज़ार मर्तबा आज़ाद ये ग़ुलाम हुआ अजब सफ़र था अजब-तर मुसाफ़िरत मेरी ज़मीं शुरू हुई और मैं तमाम हुआ वो काहिली है कि दिल की तरफ़ से ग़ाफ़िल हैं ख़ुद अपने घर का भी हम से न इंतिज़ाम हुआ हुई है ख़त्म दर-ओ-बाम की कम-अस्बाबी मयस्सर आज वो सामान-ए-इन्हिदाम हुआ