हमारी सादा-दिली थी तुम्हारी बात नहीं हमीं में कोई कमी थी तुम्हारी बात नहीं हमारे अपने ही दुख थे हमीं को रोना था तुम्हारी अपनी ख़ुशी थी थी तुम्हारी बात नहीं अज़ाब सारे जुनून-ओ-ख़िरद के मेरे थे तुम्हें तो बे-ख़बरी थी तुम्हारी बात नहीं तुम्हारी बात ही मानेंगे और निभाएँगे ये बात तुम ने कही थी तुम्हारी बात नहीं बहुत तवील थी मुद्दत फ़िराक़ लम्हों की कहाँ पे आ के रुकी थी तुम्हारी बात नहीं सितारे जैसे फ़लक से उतर के आए थे हथेली जल के बुझी थी तुम्हारी बात नहीं वो ज़िक्र था किसी बारिश की रात का शायद नज़र में आ के रुकी थी तुम्हारी बात नहीं