हमा-तन गोश इक ज़माना था मेरे लब पर तिरा फ़साना था काश दिल ही ज़रा ठहर जाता गर्दिशों में अगर ज़माना था हम थे और ए'तिमाद-ए-फ़स्ल-ए-बहार शाख़ शाख़ अपना आशियाना था वो बहारें भी हम पे गुज़री हैं जब क़फ़स था न आशियाना था दिल की उम्मीदवारियाँ न गईं उस करम का कोई ठिकाना था सुब्ह से पहले बुझ गया 'ताबिश' एक दिल ही चराग़-ए-ख़ाना था