एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द ज़ंग-आलूद हुई तेग़-ए-जफ़ा मेरे बअ'द क्यूँ हर इक मोड़ पे होता है घुटन का एहसास तंग क्यूँ होने लगी मेरी फ़ज़ा मेरे बअ'द देखते देखते ही माँद पड़े शम्स-ओ-क़मर ख़ुद से बेज़ार हुए सुब्ह-ओ-मसा मेरे बअ'द हर तरफ़ ज़र्दी-ए-रुख़्सार नज़र आती है कहीं रौशन न मिला रंग-ए-हिना मेरे बअ'द रुक गया क़ाफ़िला-ए-उम्र-ए-सुबुक-रौ शायद देख ख़ामोश है आवाज़-ए-दरा मेरे बअ'द ज़िंदगी भर न किया याद किसी ने और अब पूछते हैं वो मेरे घर का पता मेरे बअ'द उम्र भर उस को सँभाले हुए रक्खा मैं ने गिर न जाए कहीं दीवार-ए-अना मेरे बअ'द अब भी क्या इस में है आबाद स्याही 'हमदम' मेरे वीराने का क्या हाल हुआ मेरे बअ'द