छुटे ये धुँद नज़र आए अब्र-पारा कोई तुम्हारे नाम का चमके कहीं सितारा कोई भड़क उठेंगे अगर हम बड़ा ग़ज़ब होगा हमारा राख में ढूँडो न तुम शरारा कोई तुम्हारे शे'र में क्यूँ बू-ए-रफ़्तगाँ है बहुत तुम्हारे बा'द ही समझा ये इस्तिआरा कोई हुई थी दोस्ती जिस से वो कर गया हिजरत हमारा नफ़अ' में यूँ देख ले ख़सारा कोई वो अपनी सारी इमारत को त्याग दे के गया कहाँ से किस ने किया सोचिए इशारा कोई तिरी ज़मीन में लिक्खे हैं शे'र तेरे लिए तिरी ज़मीं पे नहीं है मिरा इजारा कोई न जाने क्यूँ मुझे चुभता है आज-कल 'हमदम' मिरी ही आँख से लिक्खा हुआ नज़ारा कोई