हमें हारा नहीं समझो कि हम दिल-गीर आए हैं कमानें थीं कहीं पर और कहीं से तीर आए हैं नज़र भर देख लो हम आज तकमील-ए-तमन्ना में तुम्हारे रू-ब-रू पहने हुए ज़ंजीर आए हैं ये सर हाज़िर है मेरा गर सलामत आप रह जाएँ वगर्ना मुफ़्त हाथों में लिए शमशीर आए हैं इलाही दे हमें नुसरत कि हम तेरे भरोसे पर ज़बाँ पर आज रख कर नारा-ए-तकबीर आए हैं जहाँ पर आग बरसाई थी तुम ने आसमानों से उसी बस्ती में हम कर के नई ता'मीर आए हैं सियाही दिल की मिट जाएगी क़िबला देख लीजे हम लबों पर मुस्कुराहट की लिए जागीर आए हैं हर इक लहजा सवाली है अभी तक बज़्म में 'तश्ना' गुमाँ होता है जैसे लखनऊ में 'मीर' आए हैं