हमें तो लाला-ओ-गुल अब भी सोगवार मिले जो ख़ून-ए-दिल न जलाओ तो क्या बहार मिले ये क्या कि ज़ख़्म-ए-जिगर चश्म-ए-इन्तिज़ार मिले मिले तो सोहबत-ए-हुरान-ए-गुल-एज़ार मिले कहीं तो पहुँचें ये सहरा-नवर्दियाँ कब तक वो मै-कदा ही सही गर न कोई यार मिले गुलों का हुस्न सबा का ख़िराम रंग-ए-चमन हर इक अदा में तिरी मस्ती-ए-बहार मिले हैं तेरे शहर में कुछ तो मोअल्लिम-ए-अख़्लाक़ जिन्हें ये फ़िक्र कि दामन न दाग़-दार मिले हमारी तरह जो मस्त-ए-अलस्त रहती हैं उन्हें न हल्क़ा-ए-रिंदाँ न कू-ए-यार मिले बताओ तुम ने भी उन में किसी को चाहा है तुम्हारे चाहने वाले तो बे-शुमार मिले किसी को पाया है हम ने जो बे-मिसाल 'अंजुम' क़रार खो के मिले उस से बार-बार मिले