दहर में फिरता है जूँ बाद-ए-सबा मस्ताना तेरे दीवाने का अंदाज़ हर इक रिंदाना शौक़ के फूल खिले हुस्न की क़िंदील जली सज गया आप के आते ही मिरा काशाना चाहता हूँ कि यूँही महव-ए-तमाशा हो कर जल्वा-ए-हुस्न को देखा करूँ बेबाकाना जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत का पता देती है शम्अ' पे बिखरी हुई ख़ाक दिल-ए-परवाना आज की रात तो जी भर के हमें पीने दो आज की रात तो गर्दिश में रहे पैमाना ज़िक्र छिड़ जाता है जब 'अंजुम'-ए-वहशी का कभी हँस के कहता है कोई वो है तिरा दीवाना