हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला बने अपनी ज़ात में गूँज हम न ख़ुदी मिली न ख़ुदा मिला कभी शहर शहर ख़िरद फिरी कभी दश्त दश्त जुनूँ गया मिरी ज़िंदगी मुझे कुछ बता तुझे क्या मिला मुझे क्या मिला उसे ढूँडते थे जो कू-ब-कू वो सफ़र की गर्द में अट गए किसे राह-ए-निकहत-ए-गुल मिली किसे नक़्श-ए-पा-ए-सबा मिला सर-ए-सत्ह-ए-रेग लिखी हुई कोई दास्तान-ए-जुनूँ मिली सर-ए-लौह-ए-आब बना हुआ कोई नक़्श-ए-कार-ए-वफ़ा मिला किसे हाल अपना सुनाएँ हम किसे शौक़ अपना बताएँ हम कोई हम-सफ़र है ज़मीन का कोई हम-रिकाब-ए-हवा मिला कभी कोई आँख तो भीगती कभी कोई दिल तो पसीजता मिरे शौक़-ए-ताज़ा-नवाई को ये नवा-गरी का सला मिला मिरी बंद आँख पे वा हुए कई दर तिलिस्म-ए-ख़याल के मुझे नींद आए तो किस तरह मुझे ख़्वाब-ए-अहद-फ़ज़ा मिला मैं शजर हूँ मौसम-ए-दर्द का यही रुत है मेरे लिए सदा कभी शाख़ शाख़ हरी मिली कभी बर्ग बर्ग जुदा मिला यही रौशनी मिरे हाथ है यही ताज़गी मिरे साथ है कभी कोई दाग़ चमक उठा कभी कोई ज़ख़्म नया मिला मैं चला था शहर की राह से मगर अपनी ज़ात में गुम हुआ मुझे 'बाक़र' अपनी तलाश थी मुझे आज अपना पता मिला