हमें कोई मतलब नहीं ला-मकाँ से ग़रज़ है हमें सिर्फ़ अपने मकाँ से ग़मों का ये आलम है जाने कहाँ से चले आ रहे हैं यहाँ से वहाँ से निकाले गए हैं जो हम आशियाँ से शिकायत नहीं है हमें बाग़बाँ से कहीं बर्क़ पर बिजलियाँ न गिरी हों ये शो'ला सा उठता है क्यों आसमाँ से जला ही नहीं तो धुआँ क्या उठेगा मिरे नर्म-ओ-नाज़ुक दिल-ए-ना-तवाँ से बरसती नहीं मूसला-धार ख़ुशियाँ उतरती हैं ये बूँद बूँद आसमाँ से नज़र मेरी अच्छी है फिर ये नज़ारे नज़र आ रहे हैं मुझे क्यों धुआँ से लटकती है तलवार सर पर हमेशा बचाए ख़ुदा ऐसे अम्न-ओ-अमाँ से किसी की नज़र 'ख़्वाह-मख़ाह' लग न जाए बुढ़ापे में लगते हो तुम नौजवाँ से