हमें मिला न कभी सोज़-ए-ज़िंदगी से फ़राग़ अगर बुझा है कहीं दिल तो जल उठा है दिमाग़ वही हयात जो नैरंग-ए-ख़ार-ओ-गुल है कभी कभी खिलाए तमन्ना है जो न दश्त न बाग़ जहाँ भी खोए गए क़ाफ़िले इरादों के वहीं से मुझ को मिला तेरी अंजुमन का सुराग़ गुज़र रही है अजब तरह ज़िंदगी 'आली' न बुझ रहा है चराग़ और न जल रहा है चराग़