रस्म-ए-दुनिया को निभाते जाइए ग़म को सीने से लगाते जाइए बज़ला-संजी से न बाज़ आए अगर हम न लौटेंगे बुलाते जाइए हुक्म-ए-नौ इक और जारी हो गया चोट खा कर मुस्कुराते जाइए ख़ाक नज़रों में हमारी झोंकिए ख़ाक में हम को मिलाते जाइए आइना हो कर रहूँगी आप का मेरी नज़रों में समाते जाइए ज़ुल्मत-ए-शब को सजा कर ताक़ पर इक दिया ख़ुद भी जलाते जाइए है उठाने की सकत जो आप में तोहमत-ए-दुनिया उठाते जाइए रतजगे 'रज़िया' से अब हैं मुल्तमिस याद को अपनी सुलाते जाइए