हमें उन से मोहब्बत है ज़रूरत से ज़ियादा ही उन्हें हम से शिकायत है ज़रूरत से ज़ियादा ही सितारे रश्क करते हैं नज़ारे रश्क करते हैं मिरी जाँ ख़ूबसूरत है ज़रूरत से ज़ियादा ही मिला है हम-नवा ऐसा जो मेरा हम-ज़बाँ भी है पसंद उस को भी 'सरवत' है ज़रूरत से ज़ियादा ही फ़रिश्तों को सुनाऊँगा मैं बर्ग-ए-गुल के अफ़्साने कहानी में सदाक़त है ज़रूरत से ज़ियादा ही ख़लाओं में चला जाता हूँ अक्सर घूमने को मैं ज़मीं पर फैली नफ़रत है ज़रूरत से ज़ियादा ही विरासत में भला लेगी भी क्या नस्ल-ए-फ़र-ओ-माया ग़ज़ल में भी सियासत है ज़रूरत से ज़ियादा ही ग़ज़ल सपने में कहने आई थी कल बात ये मुझ से मुझे तेरी ज़रूरत है ज़रूरत से ज़ियादा ही नकीर-ओ-मुनकिर-ओ-रिज़वाँ सुनेंगे शे'र अब मेरे 'शफ़क़' की इन को चाहत है ज़रूरत से ज़ियादा ही