हमेशा दूर रह कर भी हमेशा पास होता है मोहब्बत में कोई इक शख़्स कितना ख़ास होता है किसी से दिल ही दिल में रूठना फिर ख़ुद ही मन जाना गुमाँ इस पर कि शायद उस को भी एहसास होता है किसी के साथ रहना और वो भी अजनबी बन कर किसी को क्या पता कितना बड़ा बन-बास होता है बिखरता जाता है हर सू महकता मुश्क-बू लहजा ख़ुदा मालूम कब तक बर-सर-ए-क़िर्तास होता है सुना है लोग इस सहरा में भी सैराब होते हैं वही सहरा जो शायद आप अपनी प्यास होता है ये हम ही हैं जो आ जाते हैं बातों में ज़माने की ज़माने भर की बातों पर किसे विश्वास होता है ये मस्ती है जुनून-ए-इश्क़ की तारी है जो मुझ पर ये किस ने कह दिया हर शख़्स ही रक़्क़ास होता है वो रानाई ही रानाई है ज़ेबा उस को यकताई कि जिस का ज़िक्र मिस्ल-ए-सूरा-ए-इख़लास होता है ये कैसी मर्ग-आसा चुप लगी है आज-कल 'सीमा' सुना था दर्द का लहजा बड़ा हस्सास होता है