हमेशा ख़ुश रहो तुम और दुआ क्या ब-जुज़ इस के फ़क़ीरों की सदा क्या हसीनों की जफ़ाओं का गिला क्या सितम-गारों से उम्मीद-ए-वफ़ा क्या ज़रा आने तो दो फ़स्ल-ए-बहाराँ अभी ज़िक्र-ए-जुनून-ए-फ़ित्ना-ज़ा क्या मिज़ाज-ए-हुस्न से मैं आश्ना हूँ न पूछो दिल का मेरे मुद्दआ' क्या फ़ुज़ूँ-तर हो गए कुछ ग़म हमारे ब-जुज़ इस के मोहब्बत में मिला क्या शिकायत है तो बख़्त-ए-ना-रसा से हसीनों से तग़ाफ़ुल का गिला क्या अगर वो दूर हैं मेरी नज़र से तो ऐसी ज़िंदगी का फिर मज़ा क्या जुनून-ए-इश्क़ से घबरा रहा हूँ न कह दे वो कहीं उस को हुआ क्या समझ कर मुझ को दीवाना वो 'असलम' ख़ुदा-मा'लूम फ़रमाएँ सज़ा क्या