हम-नशीं ऐसी कोई तदबीर होनी चाहिए मेरे क़ब्ज़े में मिरी तक़दीर होनी चाहिए ख़त्म होना चाहिए अब क़िस्सा-ए-दैर-ओ-हरम ख़ानक़ाह-ए-ज़िंदगी ता'मीर होनी चाहिए इम्तियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ वक़्त पर हो जाएगा दावत-ए-मय-ख़ाना आलमगीर होनी चाहिए और बढ़ जाएँ ज़रा तिश्ना-लबी की तल्ख़ियाँ दौर-ए-साग़र में अभी ताख़ीर होनी चाहिए इस तरह तो नज़्म-ए-आलम मुंतशिर हो जाएगा ख़ुद-परस्ती क़ाबिल-ए-ताज़ीर होनी चाहिए रहज़न-ए-ईमाँ हैं दोनों शैख़ हो या बरहमन इन से बचने की कोई तदबीर होनी चाहिए मरकज़-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत मतला-ए-मेहर-ओ-वफ़ा दिल के आईने में इक तस्वीर होनी चाहिए ता-ब-कै ये लन-तरानी होशियार ऐ बर्क़-ए-तूर आरज़ू-ए-दीद की तौक़ीर होनी चाहिए ता-ब-कै ये बे-नियाज़ी ऐ हरीफ़ान-ए-सुख़न अब ज़बान-ए-'राज़' आलमगीर होनी चाहिए