हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी वो आएँगे तो गर्दिश-ए-दौराँ भी आएगी निकलेगी बू-ए-ज़ुल्फ़ हमारी तलाश में सहरा में अब हवा-ए-गुलिस्ताँ भी आएगी वो जिन को अपने तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पे नाज़ था आज उन को याद सोहबत-ए-याराँ भी आएगी हम ख़ुद ही बे लिबास रहे इस ख़याल से वहशत बढ़ी तो सू-ए-गरेबाँ भी आएगी तय हो चुका है सूद-ओ-ज़ियाँ का मोआ'मला ज़ख़्म आएँगे तो लज़्ज़त-ए-पैकाँ भी आएगी ढूँढेगी सर-बरहना हमें दश्त-ए-हिज्र में इक दिन जुनूँ में ग़ैरत-ए-जानाँ भी आएगी ऐ रह-नवर्द-ए-इश्क़ सँभल कर क़दम बढ़ा इस रास्ते में ज़ुल्मत-ए-हिज्राँ भी आएगी वो बर्क़ जो हुदूद-ए-नज़र से परे रही वो बर्क़ अब क़रीब-ए-रग-ए-जाँ भी आएगी कट जाएगा ये कर्ब-ए-शब-ए-ग़म भी ऐ 'ज़हीर' सुब्ह-ए-नशात-ओ-फ़स्ल-ए-निगाराँ भी आएगी