हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या बहार छोड़ गई है निशानियाँ क्या क्या तमाम उम्र गुल-ओ-मुल के दरमियाँ गुज़री तमाम उम्र रहीं सर-गिरानियाँ क्या क्या वो शख़्स-ए-इत्र-बदन जब भी सामने आया दिल-ओ-नज़र पे हुईं गुल-ओ-फ़शानियाँ क्या क्या ख़बर न थी यही वज्ह-ए-सुकून-ए-जाँ होगी निगाह-ए-यार से थीं बद-गुमानियाँ क्या क्या टपक के आँख से तूफ़ाँ उठा दिए जिस ने इस एक अश्क में थीं बे-करानियाँ क्या क्या हुज़ूर-ए-यार से जब इज़्न-ए-गुफ़्तुगू न मिला सुख़न-तराज़ हुईं बे-ज़बानियाँ क्या क्या हर एक दर्द को दरमाँ बना दिया उस ने जफ़ा के भेस में थीं मेहरबानियाँ क्या क्या वो हुस्न आज भी हीला-गरी में यकता है दिल-ए-ग़रीब सुनेगा कहानियाँ क्या क्या उस इक जमाल-ए-गुरेज़ाँ की जुस्तुजू में 'ज़हीर' ख़राब-ओ-ख़्वार हुई हैं जवानियाँ क्या क्या