हम-रंग लाग़री से हूँ गुल की शमीम का तूफ़ान-ए-बाद है मुझे झोंका नसीम का छोड़ा न कुछ भी सीने में तुग़्यान-ए-अश्क ने अपनी ही फ़ौज हो गई लश्कर ग़नीम का यारान-ए-नौ के वास्ते मुझ से ख़फ़ा हुए तुम को नहीं है पास नियाज़-ए-क़दीम का याद आई काफ़िरों को मिरी आह-ए-सर्द की क्यूँकि न काँपने लगे शो'ला जहीम का अज़-बस-कि सब्त-ए-नामा है सोज़-ए-तप-ए-दरूँ क़ासिद का हाथ है यद-ए-बैज़ा कलीम का वाइज़ कभी हिला नहीं कू-ए-सनम से मैं क्या जानूँ क्या है मर्तबा अर्श-ए-अज़ीम का मारा है वस्ल-ए-ग़ैर के शिकवे पे चाहिए मदफ़न जुदा जुदा मिरी लाश-ए-दो-नीम का कहता है बात बात पे क्यूँ जान खा गए गोया कि पक गया है कलेजा नदीम का वाइज़ बुतों को ख़ुल्द में ले जाएँगे कहीं है वा'दा काफ़िरों से अज़ाब-ए-अलीम का 'मोमिन' तुझे तो वहब है मोमिन ही वो नहीं जो मो'तक़िद नहीं तिरी तब-ए-सलीम का