हम-सफ़री इक धोका था मालूम नहीं शायद साथ मैं साया था मालूम नहीं लम्हा लम्हा यकजा करके देखेंगे कौन कहाँ कब बिछड़ा था मालूम नहीं जाने कैसे उस ने सहे ये ज़ुल्म-ओ-सितम अंधा गूँगा बहरा था मालूम नहीं दीवाने क्या प्यास बुझाते अश्कों से सहरा कितना प्यासा था मालूम नहीं अक्स तुम्हारे याद तुम्हारी साथ रही कैसे भीड़ में तन्हा था मालूम नहीं जिस दर से सौग़ात किसी ने न पाई हाथ वहाँ क्यों फैला था मालूम नहीं किस ने अता की ख़ार-ओ-गुल को रानाई कौन चमन से गुज़रा था मालूम नहीं माँग उजाड़ी कंगन तोड़े बेवा ने रंग-ए-हिना कब छूटा था मालूम नहीं दैर-ओ-हरम में अश्कों की बरसात रही 'साख़िर' ने क्या माँगा था मालूम नहीं