बनी हुई हैं मिरे दिल की तर्जुमाँ आँखें सुना रही हैं मोहब्बत की दास्ताँ आँखें न थी ज़बाँ को इजाज़त कि हाल-ए-दिल कहती ज़बान-ए-अश्क से करती रहीं बयाँ आँखें कभी छुपी है मोहब्बत कि मैं छुपा लेता ज़बाँ जो बंद हुई बन गईं ज़बाँ आँखें बनाओ दामन-ए-सादा पे इन से गुल-बूटे क़ुबूल हो तो करूँ नज़्र ख़ूँ-फ़िशाँ आँखें मैं अंदलीब हूँ फूलों की दीद मेरी हयात परों को बाँध न कर बंद बाग़बाँ आँखें शराफ़त-ए-निगह-ए-पाक का है निगराँ दिल तहारत-ए-दिल-ए-मोमिन की पासबाँ आँखें 'उरूज' बढ़ के करो पेश दिल का नज़राना तुम्हीं को ताक रही हैं वो दिल-सिताँ आँखें