हम-वतन था आश्ना था रात-दिन मिलता था वो उस में कुछ थी ऐसी बातें अजनबी लगता था वो अब तबस्सुम-रेज़ आँखों में नमी दिल दाग़ दाग़ बातों बातों में किसी दिन गर कभी खुलता था वो मो'तरिफ़ हैं महफ़िलें वो महफ़िलों की जान था लोग क्या जानें कहाँ किस हाल में रहता था वो आज उस की ख़ैरियत भी पूछता कोई नहीं सौ तरफ़ से हाथ उठते राह जब चलता था वो शख़्सियत में थी 'नियाज़' उस की अजब सी इक कशिश मुँह से उस के फूल झड़ते बात जब करता था वो