हाँ बना अपनी जल्वा-गाह मुझे लोग तेरा कहें गवाह मुझे कोई क्यों पूछता नहीं उन से किस ने दी फ़ुर्सत-ए-गुनाह मुझे मेरे दिल से बचाइयो लिल्लाह कर न दे ये कहीं तबाह मुझे गुज़रे तूफ़ान से नहीं वो मगर जो समझते हैं मुश्त-ए-काह मुझे ख़ुद ही कर के मुझे बहिश्त-बदर ख़ाक-दाँ की दिखाई राह मुझे याद से तेरी कर न दें ग़ाफ़िल दोस्त अहबाब माल-ओ-जाह मुझे मेरी आदत नहीं बला-नोशी मस्त करती है इक निगाह मुझे हर क़दम गो है हौसला-फ़रसा तय कराएगा शौक़-ए-राह मुझे बे-हयाओं से बे-वफ़ाओं से कुछ ज़रूरी नहीं निबाह मुझे