हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम इक उम्र उस गली में सदा कर चुके हैं हम अपने ग़ज़ाल-ए-दिल का नहीं मिल रहा सुराग़ सहरा से शहर तक तो पता कर चुके हैं हम अब तेशा-ए-नज़र से ये दिल टूटता नहीं इस आईने को संग-नुमा कर चुके हैं हम हर बार अपने पाँव ख़ला में अटक गए सौ बार ख़ुद को रिज़्क़-ए-हवा कर चुके हैं हम अब इस के बाद कुछ भी नहीं इख़्तियार में वो जब्र था कि ख़ुद को ख़ुदा कर चुके हैं हम