हँसता है बार बार मिरा यार देख कर मुझ को मुसीबतों में गिरफ़्तार देख कर ये कारोबार-ए-शौक़ है वो साहिब-हुनर सामान बेचते हैं ख़रीदार देख कर वो हर क़दम पे ठोकरें खाते हैं बारहा चलते नहीं जो वक़्त की रफ़्तार देख कर पज़मुर्दा फूल है वो इसी नौ-बहार का पत्थर न फेंको तंज़ का बेकार देख कर वो लोग पासबान-ए-हरम हो न पाएँगे जो भागते हैं लश्कर-ए-कुफ़्फ़ार देख कर हैरत-ज़दा रहेगा वो मैदान-ए-हश्र में जो मुझ को टोकता था गुनहगार देख कर प्यारे नबी के नुत्क़ का ए'जाज़ देखिए कंकर भी कलिमा पढ़ते हैं गुफ़्तार देख कर 'अंजुम' वतन की याद भी शिद्दत से आ गई इक मादर-ए-ग़रीब को बीमार देख कर