हँसते-हँसते न सही रो के ही कट जाने दो काम जीने का किसी तौर निपट जाने दो मेरे हिस्से की जो ख़ुशियाँ हैं वो बट जाने दो दर्द-ए-दुनिया मिरे सीने में सिमट जाने दो रूह नाशाद है क्यों फ़िक्र-ए-तन-ए-फ़ानी में तन है पोशाक पुरानी इसे फट जाने दो सा’अत-ए-वस्ल क़रीब आए किसी भी सूरत ज़िंदगी अपनी जो घटती है तो घट जाने दो कब तलक कोई रहे रैन-बसेरे में 'सदा' अब तो वापस मुझे घर अपने पलट जाने दो