हनूज़ याद है वो लम्हा-ए-ख़िताब तिरा मिरे हज़ार सवालों पे इक जवाब तिरा है अब भी याद मिरे दिल को आग बख़्शते वक़्त मचल रहा था जो होंटों का इल्तिहाब तिरा शबों को देर से बेदार आशिक़ी थी यहाँ बदल रहा था वहाँ करवटें शबाब तिरा लिबास-ए-शब को किया था सहर ने ज़ेब-ए-तन कि मैं ने देखा था बस जल्वा-ए-हिजाब तिरा नज़र मिले जो दोबारा तो तुझ को लौटा दूँ जो ख़्वाब पलकों ने मेरी लिया था दाब तिरा तिरी गली में जो पहुँचा तो मैं ने ये देखा मिरी निगाह से हैराँ था हुस्न-ए-बाब तिरा