हर आन तुम्हारे छुपने से ऐसा ही अगर दुख पाएँगे हम तो हार के इक दिन इस की भी तदबीर कोई ठहराएँगे हम बेज़ार करेंगे ख़ातिर को पहले तो तुम्हारी चाहत से फिर दिल को भी कुछ मिन्नत से कुछ हैबत से समझाएँगे हम गर कहना दिल ने मान लिया और रुक बैठा तो बहत्तर है और चैन न लेने देवेगा तो भेस बदल कर आएँगे हम अव्वल तो नहीं पहचानोगे और लोगे भी पहचान तो फिर हर तौर से छुप कर देखेंगे और दिल को ख़ुश कर जाएँगे हम गर छुपना भी खुल जावेगा तो मिल कर अफ़्सूँ-साज़ों से कुछ और ही लटका सेहर-भरा उस वक़्त बहम पहुँचाएँगे हम जब वो भी पेश न जावेगा और शोहरत होवेगी फिर तो जिस सूरत से बन आवेगा तस्वीर खिंचा मंंगवाएँगे हम मौक़ूफ़ करोगे छुपने को तो बेहतर वर्ना 'नज़ीर' आसा जो हर्फ़ ज़बाँ पर लाएँगे फिर वो ही कर दिखलाएँगे हम