हर अज़िय्यत से गुज़ारे हुए लोग हम तिरे हिज्र के मारे हुए लोग कितनी जल्दी है उतारा दिल से कितनी जल्दी तुम्हें प्यारे हुए लोग रास आती नहीं कोई भी शय हम तिरे इश्क़ पे वारे हुए लोग काश आ सकते पलट कर फिर से हाए वो लोग गुज़ारे हुए लोग फूल भी सूख गए रस्तों पे जाने कब आएँ पुकारे हुए लोग क्या कोई हम को हराता 'इक़रा' हम तो हैं ख़ुद से ही हारे हुए लोग