हर चंद अपना हाल न हम से बयाँ हुआ ये हर्फ़-ए-बे-वजूद मगर दास्ताँ हुआ माना कि हम पे आज कोई मेहरबाँ हुआ दिल काँपता है ये भी अगर इम्तिहाँ हुआ जो कुछ मैं कह चुका हूँ ज़रा उस पे ग़ौर कर जो कुछ बयाँ हुआ है ब-मुश्किल बयाँ हुआ अब तुम को जिस ख़ुलूस की हम से उमीद है मुद्दत हुई वो नज़्र-ए-दिल-ए-दोस्ताँ हुआ तूफ़ान-ए-ज़िंदगी में ज़रूरत थी जब तिरी मुझ को हर एक मौज पे तेरा गुमाँ हुआ आदाब-ए-क़ैद-ओ-बंद ने बदला अजीब रंग कुंज-ए-क़फ़स का नाम भी अब आशियाँ हुआ आँसू निकल पड़े हैं ख़ुशी में तिरे हुज़ूर किस तमकनत के साथ ये दरिया रवाँ हुआ