हर दुआ बे-असर हो गई By Ghazal << हर पल था लाला-ज़ार अभी कल... ज़िंदगी मुश्किल कभी ऐसी न... >> हर दुआ बे-असर हो गई ज़िंदगी मुख़्तसर हो गई दिल का अरमाँ न निकला कोई हर ख़ुशी दर्द-ए-सर हो गई याद को देखे अर्सा हुआ दोस्ती दर-ब-दर हो गई जुस्तुजू में तिरी जान-ए-मन बैठे बैठे सहर हो गई याद 'रम्मन' की दिल में रही ज़िंदगी यूँ बसर हो गई Share on: