ज़िंदगी मुश्किल कभी ऐसी न थी और दिल को बे-दिली ऐसी न थी हम ने समझा था न जब तक रम्ज़-ए-शौक़ दिल की आवारा-रवी ऐसी न थी बाम पर जब तक कि तुम आए न थे बाम-ओ-दर पर रौशनी ऐसी न थी जब तलक हासिल न था तेरा नियाज़ अपनी शान-ए-बंदगी ऐसी न थी मिट चुका है इस ज़माने से ख़ुलूस उस की पहले तो कमी ऐसी न थी हम पहुँच जाते सर-ए-मंज़िल मगर राहबर की रहबरी ऐसी न थी आप जब तक सामने आए न थे हम पे तारी बे-ख़ुदी ऐसी न थी जब तलक पहलू में वो आए न थे लज़्ज़त-ए-हमसायगी ऐसी न थी वो हसीं है 'औज' हर महफ़िल की जान उस में पहले दिलकशी ऐसी न थी