हर दुख को मैं झेली हूँ दर्द-बिसात पे खेली हूँ ख़ुद से ही दिल की बात करूँ अपनी आप सहेली हूँ क्या कोई मुझ को जानेगा ऐसी एक पहेली हूँ तेरे जहाँ को महकाऊँ चम्पा और चमेली हूँ अपने हिसार में लाऊँ तुझे दस्त-ए-दुआ' की हथेली हूँ मुझ में बस्ता नहीं कोई पुर-असरार हवेली हूँ करूँ जो तेरे बस में नहीं वो सरमस्त अलबेली हूँ इस पुर-शोर ज़माने में 'ख़ानम' कितनी अकेली हूँ