हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए सुकून-ए-क़ल्ब नहीं फिर भी आदमी के लिए तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए न खा फ़रेब वफ़ा का ये बेवफ़ा दुनिया कभी किसी के लिए है कभी किसी के लिए ये दौर-ए-शम्स-ओ-क़मर ये फ़रोग़-ए-इल्म-ओ-हुनर ज़मीन फिर भी तरसती है रौशनी के लिए कभी उठे थे जो ख़ुर्शीद-ए-ज़िंदगी बन कर तरस रहे हैं वो तारों की रौशनी के लिए सितम-तराज़ी-ए-दौर-ए-ख़िरद ख़ुदा की पनाह कि आदमी ही मुसीबत है आदमी के लिए रह-ए-हयात की तारीकियों में ऐ 'ज़ाहिद' चराग़-ए-दिल है मिरे पास रौशनी के लिए