हर इक चलन में उसी मेहरबाँ से मिलती है ज़मीं ज़रूर कहीं आसमाँ से मिलती है सुरूद-ए-इश्क़ में नग़्मात-ए-सह्र शामिल हैं तिरी ख़बर भी मिरी दास्ताँ से मिलती है तिरी निगाह से आख़िर अता हुई दिल को वो इक ख़लिश कि ग़म-ए-दो-जहाँ से मिलती है चले हैं 'सैफ़' वहाँ हम इलाज-ए-ग़म के लिए दिलों को दर्द की दौलत जहाँ से मिलती है