हर एक चीज़ का इस तरह काल पड़ने लगा मिरा वतन मिरे दिल की तरह उजड़ने लगा जिसे बिगड़ना न था वो भी यूँ बिगड़ने लगा ज़मीन फटने लगी और दरख़्त उखड़ने लगा किसी को रोता हुआ देख कर जो रोया हूँ मैं हर निगाह में मानिंद-ए-ख़ार गड़ने लगा जगह जगह से पलसतर निज़ाम-ए-कोहना का ये बहस काहे को होती है अब उधड़ने लगा बहुत दिनों से मिरे शहर के हर इक घर से सदाएँ आने लगी हैं कि घर उजड़ने लगा हवाएँ तेज़ थीं 'इक़बाल' और क्या करता यही किया कि हवाओं से मैं भी लड़ने लगा