हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए तमाम शहर ही दामन-कुशा है मेरे लिए हर एक तर्शे हुए जिस्म में है आँच तिरी हर एक बुत-कदा आतिश-कदा है मेरे लिए बला-ए-जाँ हैं ये गहराइयाँ समुंदर की अज़ाब इशरत-ए-क़तरा बना है मेरे लिए मैं एक खेल समझता था दर्द-ए-उल्फ़त को तमाम उम्र का अब रतजगा है मेरे लिए भिगो भिगो गया बादल किसी की ज़ुल्फ़ों का सितम-ज़रीफ़ ये काली घटा है मेरे लिए