रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा है और मैं हूँ ये तेरा नक़्श-ए-पा है और मैं हूँ निगाहों में है ज़ंजीर-ए-मोहब्बत तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता है और मैं हूँ शब-ए-आख़िर फ़ज़ा-ए-दिल में फैली ख़मोशी की रिदा है और मैं हूँ यही है मुख़्तसर सी अपनी दुनिया ये मेरा आइना है और मैं हूँ वही है हिज्र की रुत की उदासी वही क़ातिल हवा है और मैं हूँ नज़र में है कोई ख़ूँ-रेज़ मंज़र कोई ज़ख़्मी सदा है और मैं हूँ ख़ुदा ही जाने होने वाला क्या है तिरी क़ातिल अदा है और मैं हूँ मुझे क्या लेना देना है जहाँ से ख़याल-ए-दिल-रुबा है और मैं हूँ वही है बादिया-पैमाई अपनी वही आब-ओ-हवा है और मैं हूँ