हर एक गोशे में रंग-ए-बहार देखा है मिरी निगाह ने जल्वा हज़ार देखा है सभी तो जल्वा-ए-जानाँ का कर रहे थे गिला निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम किस ने यार देखा है हम उन की बज़्म से मायूस उठ गए लेकिन निगाह-ए-हुस्न को आईना-दार देखा है कली कली में गुलिस्ताँ में फ़ितरत-ए-गुल में कहाँ कहाँ न दिल-ए-बे-क़रार देखा है गवाही देते हैं रह रह के आज ऐ 'तालिब' फ़लक के चाँद-सितारों ने प्यार देखा है